Krishna aur Arjun

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कृष्ण को सबसे प्रिय थे अर्जुन। 

Krishna aur Arjun – कृष्ण और अर्जुन महाभारत के सबसे मुख्य पात्रों में से हैं। महाभारत में कृष्ण ने पांडवों का साथ दिया।कृष्ण चाहते तो महाभारत के युद्ध को क्षण भर में खत्म कर सकते थे। इसमें न तो कोई युद्ध होता ,और न ही इतनी जनहानि होती। लेकिन गीता के श्लोकों द्वारा जान सन्देश जाए। और पांडवों को न्याय पूर्वक उनका हक़ मिले।इसके लिए महाभारत का युद्ध होना ही था। 

पांडवों की माता कुंती और कृष्ण के पिता वासुदेव दोनों भाई बहिन थे। कुंती कृष्ण जी की बुआ थी। इस रिश्ते से कृष्ण, पांडवों के ममेरे भाई हुए। ममेरे भाई होते हुए भी Krishna aur Arjun पहली बार द्रौपदी स्वयंवर में मिले। पांडव भेष बदल कर स्वयंवर में आये हुए थे। लेकिन फिर भी कृष्ण ने उनको पहचान लिया। इस दिन के बाद से कृष्ण पूर्ण रूप से पांडवों के पक्ष में आ गए। पांडव और कृष्ण भाई थे लेकिन सभी भाइयों में कृष्ण को सबसे प्रिय अर्जुन थे। 

कब कब कृष्ण ने अर्जुन को मरने से बचाया?

(1) अश्वसेन और अर्जुन

महाभारत में कर्ण और अर्जुन का युद्ध बहुत प्रचलित है।अर्जुन और कर्ण दोनों ही महाभारत के सबसे होनहार धनुर्धर में से गिने जाते हैं।कर्ण हमेशा अर्जुन को नीचा दिखाने की कोशिश करता रहता था। वह चाहता था कि अर्जुन से अच्छा धनुर्धर उसे माना जाए। महाभारत के युद्ध में कर्ण ने अर्जुन को हराने के लिए कई वर्षों तक भिन्न भिन्न प्रकार के अस्त्रों और शस्त्रों में निपुणता प्राप्त कर ली थी।

आखिर वो दिन सामने आ ही गया जब दोनों में बहुत भयंकर युद्ध शुरू हो गया।krishna and arjunदोनों ही योद्धा एक दूसरे पर एक से एक खतरनाक शक्ति का प्रयोग कर रहे थे। एक समय ऐसा आया जब अर्जुन को हराने के लिए कर्ण ने सर्प बाण का प्रयोग किया। यह बाण असलियत में अश्वसेन था।

अश्वसेन पाताल लोक में रहता था और अर्जुन को अपना शत्रु मानता था। क्योंकि अर्जुन ने खांडव वन में उसकी माता का वध कर दिया था। कर्ण ने यह तीर जब अर्जुन के ऊपर छोड़ा तो अर्जुन यह नहीं जान पाया कि यह बाण नहीं बल्कि खुद अश्वसेन है। लेकिन कृष्ण ने अश्वसेन को पहचान लिया।और उन्होंने तुरंत अपने पैर से रथ को मिट्टी में धंसा दिया। जिस से की कर्ण के हाथों से चला तीर चूक जाए। और वही हुआ कर्ण के हाथों से चला तीर अर्जुन को लगने के बजाय अर्जुन के मुकुट पर जाकर लगा।और मुकुट नीचे गिर गया। इस तरह कृष्ण ने अर्जुन को बचा लिया।

लेकिन कर यह देख कर कर्ण गुस्से से पागल हो गया। जैसे ही अर्जुन और कृष्ण मिट्टी में धंसे रथ को बाहर निकलने के लिए नीचे उतरे। कर्ण ने अर्जुन पर लगातार 12 तीर चला दिए। यह देखकर कृष्ण तुरंत अर्जुन के सामने आ गए।और 12 के 12 तीर अपने शरीर पर सह लिये और अर्जुन को बचा लिया।

 Krishna aur Arjun

(2) जयद्रथ और अर्जुन

जयद्रथ और अर्जुन के बीच कभी युद्ध नहीं हुआ। यहां तक कि जयद्रथ तो अर्जुन से बहुत डरता था। अर्जुन ने प्रतिज्ञा ले ली थी कि सूर्यास्त से पहले अगर वह जयद्रथ को नहीं मार पाएगा तो वह आत्मदाह कर लेगा।
द्रौपदी हरण
draupadi कौरवों से जुएं की  बाजी हारने के बाद सभी पांडव 12 साल का वनवास गुजार रहे थे। एक वन से दूसरे वन में भटकते भटकते किसी एक जंगल में उनका सामना जयद्रथ हो गया।जयद्रथ सिंध देश का राजा था। जिस जंगल में पांडव रह रहे थे उसी जगह 1 दिन जयद्रथ ने द्रौपदी को अकेला जानकर उसे परेशान करने लगा। द्रोपदी से बार-बार अपने आने साथ आने के लिए जबरदस्ती कर रहा था। द्रोपदी के लाख समझाने पर भी जयद्रथ नहीं माना और उसका अपहरण कर लिया। लेकिन पांडवों को यह बात पता चल गई और उन्होंने जयद्रथ को रस्ते में ही पकड़ लिया।
जयद्रथ का अपमान
भीम से यह सब यह सब सहन नहीं हुआ और वह जयद्रथ का वध करने के लिए आगे बढ़ा। लेकिन अर्जुन ने तुरंत ही भीम को रोक लिया और कहा कि वह कौरवों की इकलौती बहन दुशाला, का पति है। कृपया इसे जाने दें। लेकिन भीम का गुस्सा शांत नहीं हो रहा था। उन्होंने जयद्रथ के सर पर पांच चोटी बनाकर, बाकि सारा सर गंजा कर दिया।
शिवजी का वरदान
lord-shivaजयद्रथ को यह अपमान बर्दाश्त नहीं हुआ। पांडवों से बदला लेने के लिए उसने भगवान शिव की पूजा अर्चना करनी शुरू कर। बहुत कठोर तपस्या के बाद शिवजी ने जयद्रथ को दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा। जयद्रथ ने कहा कि मुझे पांडवों पांडू को पर विजय पाने का वरदान दें। शिवजी जयद्रथ की तपस्या से प्रसन्न थे। लेकिन उन्होंने इस वरदान को देने से मना कर दिया। और कहा कि कोई एक व्यक्ति सभी पांडवों पर विजय एक साथ विजय नहीं पा सकता। लेकिन अगर पांचों में से एक पांडव अलग हो जाए तो तुम उन पर विजय पा सकते हो। जयद्रथ ईश्वरदान को पाकर खुश था।वह दुर्योधन के साथ मिल गया और सही मौके पर इंतजार करने लगा। एक दिन अर्जुन, सुशर्मा से लड़ते-लड़ते युद्ध भूमि से काफी दूर आ गया। सुशर्मा, भानुमति (दुर्योधन की पत्नी) का भाई और त्रिगर्त देश का राजा था। और वह भी पांडवों को हराना चाहता था। मौका देखकर कौरवों ने तुरंत चक्रव्यूह की रचना करी। अर्जुन की अनुपस्थिति में चक्रव्यूह को सिर्फ अभिमन्यु ही चक्रव्यूह भेद कर अंदर जा सकता था। लेकिन बाहर आना नहीं जानता था।
चक्रव्यूह, जयद्रथ, अभिमन्यु और पांडव
अभिमन्यु चक्रव्यूह के अंदर गया और कौरवों से युद्ध करने लगा। अभिमन्यु के पराक्रम को देखकर गौरव घबराने लगे। और उन्होंने अभिमन्यु वध युद्ध नीति के खिलाफ एक साथ वार कर दिया। यह देख बाकी पांडव अभिमन्यु की सहायता के लिए चक्रव्यूह में आने की ओर बढ़े। लेकिन चक्रव्यूह के मुख पर जयद्रथ था। और शिव जी के लिए वरदान की वजह से उसने चारों पांडवों को अकेले ही रोक लिया । कोई भी पांडव चक्रव्यूह के अंदर नहीं आ पाया और अभिमन्यु वीरगति को प्राप्त हुआ। अभिमन्यु के वीरगति को प्राप्त हो जाने की सूचना जब उसके पिताजी अर्जुन को मिली। तो अर्जुन क्रोध की अग्नि से पागल हो रहा था।और क्रोध में उसने प्रतिज्ञा कर डाली कि अगले दिन वह सूर्य अस्त के होने से पहले पहले जयद्रथ का वध कर देगा। और अगर वह ऐसा नहीं कर पाया वह अपना आत्मदाह कर देना।
अर्जुन की प्रतिज्ञा
जयद्रथ और अर्जुन की प्रतिज्ञा को सुनकर बहुत घबरा गया। क्योंकि उसे विश्वास था कि अगर अर्जुन एक बार प्रतिज्ञा कर लेगा तो उसे पूरा जरूर करेगा। अगले दिन अर्जुन ने जयद्रथ को युद्ध भूमि में ढूंढना शुरू कर दिया।लेकिन कौरवों ने जयद्रथ को छुपा रखा था। कौरव सूर्यास्त होने का इंतजार कर रहे थे ताकि अर्जुन अपना आत्मदाह कर ले। इधर अर्जुन क्रोध की अग्नि में झुलस रहा था। कृष्ण से अर्जुन की यह हालत देखी नहीं जा रही थी। कृष्ण ने अर्जुन को विजयी के लिए अपनी माया से सूर्य को ढक दिया। जिससे सूर्यास्त जैसा प्रतीत होने लगा। और कौरवों में खुशी का माहौल बन गया। जयद्रथ भी अर्जुन का आत्मदाह देखने के लिए बाहर आ गया। यह देख कृष्ण ने तुरंत अर्जुन को सूचित किया अर्जुन से कहा कि वह देखो तुम्हारा शत्रु बाहर आ गया है जाओ और उसका वध कर दो। अभी सूर्यास्त नहीं हुआ है। और कृष्ण ने पूरे पर से अपनी माया जाल को हटा दिया।
जयद्रथ वध
जयद्रथ को मिले एक दूसरे वरदान के अनुसार। जो भी उसका सर जमीन पर गिरा देगा उसके सर के भी 1000 टुकड़े हो जाएंगे।कृष्ण और अर्जुन अभी अर्जुन ने जयद्रथ को मारने के लिए बाण चलाने ही वाला था कि कृष्ण ने उसे रोक दिया। और कहा कि यहां से सौ योजन की दूर पर इसके पिता तब कर रहे हैं। तुम इस तरह से बाण चलाना कि इसका सर शरीर से अलग होकर इसके पिता की गोद में गिरे। अर्जुन ने कृष्ण की बात मानी। और इस तरह से तीर चलाया की जयद्रथ का सर धड़ से अलग होकर उड़ता चला गया और सीधे जयद्रथ के पिता की गोद में गिरा। जिससे कि जयद्रथ के पिता के सर के भी हजार टुकड़े हो गए।  Krishna aur Arjun

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