कृष्ण को सबसे प्रिय थे अर्जुन। भाग 4 …
Draupadi ke putra, पांचों पांडव जैसे ही बलशाली और शूरवीर थे। हर एक पांडव भाई से पांचाली को एक एक पुत्र था। द्रौपदी के पांचो पुत्रों के नाम इस प्रकार हैं :
- युधिष्ठिर और द्रौपदी के पुत्र का नाम प्रतिविन्ध्य था।
- भीम और द्रौपदी के पुत्र का नाम सुतसोम था।
- अर्जुन और द्रौपदी के पुत्र का नाम श्रुतकर्मा था।
- नकुल और द्रौपदी के पुत्र का नाम शतानीक था।
- सहदेव और द्रौपदी के पुत्र का नाम श्रुतसेन था।
द्रौपदी पूर्व जन्म
महाभारत काल से बहुत पहले। द्रौपदी पूर्व जन्म में राजा नल और रानी दमयंती की पुत्री नलयनी थी। नलयनी बहुत गुणवान और सुन्दर कन्या थी। लेकिन अपने पूर्व जन्म के कर्मों के कारण बहुत परेशान थी। राजा नल के अथक प्रयासों के बाद भी नलयनी का विवाह नहीं हो पा रहा था। उसके और वह भी इसी कारण से चिन्तामग्न रहते थे। नलयनी जन्म से ही शिव भक्त थी। जब कोई उपाय काम नहीं आया , तब नलयनी ने भगवान् शिव को प्रसन्न करने की सोची।
द्रौपदी की तपस्या
नलयनी हर दिन घोर तपस्या करके शिव को प्रसन्न करने की कोशिश कर रही थी। लेकिन शिव भगवान चने की परीक्षा ले रहे थे और हर दिन उसको तपस्या करते हुए देख रहे थे। अंत में जब 5 दिन कठोर तपस्या करने के बाद भी जब शिव जी के दर्शन नहीं हुए। तब नलयनी ने अपना आत्मदाह करने की सोची। उसने तक अग्नि में ही, अपनी देह त्याग करने की ठान ली। लेकिन जैसे ही वह आगे बढ़ी तुरंत शिव भगवान प्रसन्न हुए और नलयनी को रोक लिया। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिव जी ने कोई पर मांगने के लिए कहा।
शिव जी का वरदान
नलयनी अपने विवाह ना होने की वजह से अत्यंत चिंतित थी। कोई भी पुरुष उसे अपनाना नहीं चाह रहा था। ऐसे में उसने शिव भगवान से 14 गुणों वाला पति मांगने का वरदान मांगा। शिव जी ने ऐसा वर देने से मना कर दिया और कहा कि इतने सारे कौन एक ही मनुष्य में होने असंभव है।लेकिन, क्युकी 5 दिन तपस्या करें तो मैं यह सभी गुण तुम्हें पांच पतियों में इतना बोल कर शिवजी अंतर्ध्यान हो गए। लेकिन एक स्त्री 5 पति के साथ कैसे रह सकती है। नलिनी ने फिर शिवजी का आह्वान किया और अपनी व्यथा सुनाई। शिवजी बोले की श्राप और वरदान वापस नहीं हो सकते।लेकिन मैं तुम्हें यह आशीर्वाद देता हूं की हर दिन प्रातः स्नान के बाद तुम फिर से स्वच्छ हो जाओगी।
रुद्र के अंश, अश्वत्थामा का जन्म
अब महाभारत काल के वक्त राजा पृषत और मुनि भारद्वाज दोनों मित्र थे। मुनि भारद्वाज के आश्रम में ही द्रोणाचार्य और राज्य पृषत का बेटा द्रुपद शिक्षा ले रहे थे। एक ही जगह शिक्षा ग्रहण करने की वजह से द्रुपद और द्रोणाचार्य बहुत अच्छे मित्र थे। शिक्षा समाप्त होने के कुछ समय पश्चात द्रुपद को अपने पिता का सिंहासन मिला। और वह पांचाल देश का राजा बना। लेकिन द्रोणाचार्य अपने पिता मुनि भारद्वाज के आश्रम में रहकर तपस्या करने लगे।
गुरु द्रोण गुरु द्रोणाचार्य का विवाह कृपाचार्य की बहन कृपी से हुआ। और बाद में द्रोणाचार्य और कृपी से 1 पुत्र ने जन्म लिया जिसका नाम अश्वत्थामा था। अश्वत्थामा का जन्म एक गुफा में हुआ था। यह जगह अब टपकेश्वर महादेव मंदिर उत्तराखंड में है।
द्रोणाचार्य शुरू से ही शिव भक्त थे और वे शिव जी के समान ही एक पुत्र चाहते थे। जब अश्वत्थामा ने जन्म लिया तो उसने घोड़े की तरह हुंकारना शुरू कर दिया। इस वजह से उसका नाम अश्वत्थामा रख दिया गया। अश्वत्थामा अपने मस्तक पर एक मणि के साथ पैदा हुआ था। इस मणि के होने की वजह से उसके अंदर मनुष्य, मनुष्य से नीचे वाली जातियों की ताकत उसके अंदर थी। उसको भूख, प्यास या थकान महसूस नहीं होती थी।
बचपन के मित्र द्रुपद द्वारा द्रोणाचार्य का अपमान
अश्वथामा को कभी भूख प्यास थकान नहीं लगती थी। लेकिन अश्वत्थामा को दूध बहुत पसंद था। और द्रोणाचार्य एक गरीब ऋषि मुनि होने के कारण हमेशा दूध नहीं ला सकते थे। एक दिन जब अश्वत्थामा कि दूध के लिए लालसा द्रोणाचार्य से देखी नहीं गई तो उसने अपने मित्र राजा द्रुपद से गौदान मांगने की सोची।
द्रोणाचार्य पांचाल गए और द्रुपद से मिले।
द्रुपद अपने अपने बचपन के मित्र को पहचान लेता है। लेकिन द्रोणाचार्य की गरीबी का उपहास करके उन्हें बिना कुछ दिए लज्जित करके वापस भेज देता है। और कहता है कि एक गरीब और राजा की दोस्ती कभी नहीं हो सकती।अश्वत्थामा द्रोणाचार्य के लिए शिव का उपहार था। वह अपने पुत्र से बहुत प्रेम करते थे। यह उपहास और अश्वत्थामा के लिए दूध ना ला पाना द्रोणाचार्य को बहुत बुरा लगा और वह पांचाल नरेश द्रुपद से बदला लेने की सोचने लगे। द्रोणाचार्य को समझ आ गया था कि आश्रम में रहकर यह सब नहीं होने वाला। वह कृपाचार्य के कहने पर हस्तिनापुर आ गए और और उन्होंने पांडवों और कौरवों को शिक्षा देना शुरू कर दिया।
द्रोणाचार्य का बदला
कुछ समय पश्चात ही है द्रोणाचार्य की शिक्षा खत्म हो गई। और उन्होंने कौरवों पांडवों भाइयों से दक्षिणा के रूप में पांचाल नरेश द्रुपद को बंदी बना बना कर लाने के लिए कहा। गौरव भाइयों ने अर्जुन की मदद से द्रुपद को हरा दिया और उसे बंदी बनाकर द्रोणाचार्य के सामने ले आए। द्रोणाचार्य के सामने आते ही द्रुपद को अपनी कही हुई बातें और द्रोणाचार्य का अपमान याद आ गया।वह क्षमा मांगने लगा और उसे और उसे जीवित छोड़ने की प्रार्थना करने लगा। द्रोणाचार्य को उस पर दया आ गई और उन्होंने आधा राज्य लेकर द्रुपद को छोड़ दिया। द्रुपद को अपना अपमान सहन नहीं हुआ और उसने द्रोणाचार्य से बदला लेने की ठान ली।
द्रौपदी जन्म
द्रुपद जानता था कि उसके पास सिर्फ आधा ही राज्य है बची हुई सेना साथियों में से किसी में भी द्रोणाचार्य को हराने हराने की क्षमता नहीं है। बार वह घूमते हुये वह कल्याणी नगरी के ब्राह्मणों के गाँव में जा पंहुचा। वहाँ उनकी भेंट याज तथा उपयाज नामक ब्राह्मण भाइयों से हुई। राजा द्रुपद समझ गया कि यह ब्राह्मण भाई उसकी सहायता कर सकते हैं। द्रुपद ने उनकी सेवा करके उन्हें प्रसन्न कर लिया एवं उनसे द्रोणाचार्य के मारने का उपाय पूछा। उनके पूछने पर बड़े भाई याज ने कहा,इसके लिये आप एक विशाल यज्ञ का आयोजन करके अग्निदेव को प्रसन्न कीजिये जिससे कि वे आपको वे महान बलशाली पुत्र का वरदान दे देंगे।
द्रौपदी के पिता द्रुपद ने किया यज्ञ
महाराज ने याज और उपयाज से उनके कहे अनुसार यज्ञ करवाया। यंग समापन पश्चात याज और उपयाज ब्राह्मण, द्रुपद की पत्नी पृषती को प्रसाद ग्रहण करने के लिए कहते हैं। लेकिन वह प्रसाद ग्रहण करने से मना कर देते हैं। कहती है कि रुकिए मुझे हाथ पैर धो लेने दीजिए। याज और उपयाज जानते थे कि प्रसाद को तुरंत ही ग्रहण करना होगा। और वह द्रुपद की पत्नी के लिए रुक नहीं सकते थे। इसलिए उन्होंने वह प्रसाद यज्ञ अग्नि में ही डाल दिया।
अग्नि में प्रसाद डालते ही अग्निदेव ने पसंद होकर उन्हें एक ऐसा पुत्र दिया जो सम्पूर्ण आयुध एवं कवच कुण्डल से सुशोभित था। उसके पश्चात् उस यज्ञ कुण्ड से एक कन्या उत्पन्न हुई जिसके नेत्र खिले हुये कमल के समान थे, भौहें चन्द्रमा के समान वक्र थीं तथा उसका वर्ण श्यामल था। प्रसाद ग्रहण न करने की वजह से जो पुत्र और पुत्री सृष्टि से उत्पन्न होने वाले थे वह यज्ञ अग्नि से ही उत्पन्न हो गए। युवक का नाम धृष्टद्युम्न रखा गया और युक्ति का नाम कृष्णा।
Draupadi ke putra
कुछ समय पश्चात पांडव द्रौपदी के स्वयंवर में भाग लेते हैं और स्वयंवर जीत लेते हैं। पिछले जन्म में मिले शिव वरदान के अनुसार द्रौपदी को पांच पति मिले। इन पांचों पतियों से द्रोपदी को पांच पुत्र हुए। यह पांचों पुत्र कद काठी, बल और बुद्धि में ठीक ने पिता समान थे।
महाभारत का 15 वां दिन
आखिरकार महाभारत का युद्ध शुरू होता है। अग्नि देव द्वारा दिए गए कवच और कुंडल से सुशोभित धृष्टद्युम्न पांडवों के साथ था। और द्रोणाचार्य कौरवों के साथ। दोनों एक दूसरे के शत्रु थे। धृष्टद्युम्न एक सही अवसर खोज रहा था ताकि वह द्रोणाचार्य का वध कर सकें।
द्रुपद का बदला और द्रोणाचार्य का वध
महाभारत के 15 वें दिन श्री कृष्ण के सुझाव के अनुसार। भीम अश्वत्थामा नाम के हाथी की अवध कर देता है। और इसे एक खुशी का समाचार के रूप में फैलाया जाता है जिसे द्रोणाचार्य को भी पता लग जाए। द्रोणाचार्य सभी से इस समाचार की पुष्टि करते हैं। लेकिन किसी को भी यह नहीं सही से नहीं पता था कि अश्वत्थामा हाथी या अश्वत्थामा उनका पुत्र किसका वध हुआ है। आखिर में द्रोणाचार्य युधिष्ठिर के पास जाते हैं और युधिष्ठिर से सच पूछते हैं। धर्मराज युधिष्ठिर झूठ नहीं बोल सकते उन्होंने अपने जीवन में कभी झूठ नहीं बोला था। इसलिए द्रोणाचार्य को आशा थी कि सही-सही बताएंगे। लेकिन कृष्ण के दिए गए निर्देशों के अनुसार उस दिन धर्मराज युधिष्ठिर को झूठ बोलना था।
युधिष्ठिर कह दिया हां अश्वत्थामा मर चुका है और बहुत हल्की सी आवाज में यह बोला यह नहीं पता कि हाथी कि आपका पुत्र, जो द्रोणाचार्य को सुनाई नहीं दिया।द्रोणाचार्य तुरंत दुख के सागर में डूब गए और अपने घुटनों पर आकर विलाप करने लगे। उन्होंने योग विद्या के बल पर अश्वत्थामा अपने पुत्र की आत्मा को ढूंढना शुरू कर दिया। लेकिन इससे पहले कि द्रोणाचार्य अश्वत्थामा की आत्मा को ढूंढ पाते कृष्ण ने तुरंत धृष्टद्युम्न को बुलाकर द्रोणाचार्य का वध करने के लिए कहा
इससे पहले कि आचार्य उठ खड़े हों और यह सब कुछ जान जाए इनका वध कर दो।
और धृष्टद्युम्न ने अपने पिता द्रुपद के अपमान का बदला लिया द्रोणाचार्य का वध कर दिया।
Draupadi ke putra की हत्या
महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ पांडव विजय की खुशी मैं अपने अपने स्थान पर सोने जा रहे थे। लेकिन तभी कृष्ण आते हैं और उनसे वह स्थान छोड़कर कहीं और सोने के लिए कहते हैं। और कहते हैं कि इस जगह कोई और सो सकता है। फिर उस जगह द्रौपदी के पांचों पुत्रों को सुला दिया गया।अश्वथामा अपने पिता की अन्याय पूर्वक और युद्ध नीति के खिलाफ हुई हत्या के कारण क्रोध में पागल पांडवों की हत्या करने के लिए उनके पास पहुंचा।
रूद्र शक्तियां जागृत हुई
अश्वथामा स्वयं शिव का अंश और ग्यारह रुद्रों में से एक था। क्रोध की अग्नि में जलता हुआ, वह इस वक्त अपनी सभी शक्तियों को एकजुट करके रूद्र के जैसा प्रतीत हो रहा था।अश्वत्थामा ने पहले अपने पिता के हत्यारे सोये हुए धृष्टद्युम्न को और जगाया ।और उसका गला घोंटकर मार डालना चाहता था।लेकिन धृष्टद्युम्न अपने हाथ में तलवार लेकर मरने की विनती करता है। उसके बाद अश्वथामा Draupadi ke putra, (उपपांडवों), शिखंडी , युधमन्यू, उत्तमौज और पांडव सेना के कई अन्य प्रमुख योद्धाओं और सैनिकों का अकेले ही वध कर देता है।