Barbarik

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कृष्ण को सबसे प्रिय थे अर्जुन। भाग 3 …

Barbarik,  इन्हे खाटू श्याम इसलिए कहा जाता हैं क्युकी इनका मंदिर राजस्थान के खाटू गांव में स्थित है। और गुजरात में इन्हे बलियादेव के नाम से भी पूजते हैं। 

barbarik

Barbarik, पूर्व जन्म

बर्बरीक महाभारत से बहुत पहले पूर्व जन्म में एक यक्ष थे । जिन्हें विष्णु भगवान का अपमान करने की वजह से ब्रह्मा जी ने श्राप दिया था। एक बार भगवान ब्रह्मा जी और कई अन्य देव बैकुंठ लोक आए और भगवान विष्णु से कहा की धरती पर अधर्म बढ़ रहा है।उन्हें रोकने और उनका अत्याचार बंद करने के लिए भगवान विष्णु की मदद लेने आए। भगवान विष्णु ने देवताओं से कहा कि वह जल्द ही एक मनुष्य के रूप में पृथ्वी पर अवतार लेंगे और सभी पृथ्वी को पाप मुक्त करेंगे ।लेकिन तभी एक यक्ष ने देवताओं से कहा कि
इस कार्य के लिए भगवान विष्णु को पृथ्वी पर अवतार लेने क्या आवश्यकता है। वह अकेले ही सभी दुष्टों का संहार करने के लिए पर्याप्त है।
यह सुन ब्रह्मा जी को बहुत दुख हुआ। भगवान ब्रह्मा ने यक्ष को श्राप दे दिया
जब भी पृथ्वी पर पाप बहुत ज़्यादा बढ़ जाएगा। तब, दुष्टों , आतंकियों आदि का करने से पहले भगवान विष्णु पहले उसका वध करेंगे। और वह एक दैत्य जाति में जन्म लेगा। 
इस श्राप के अनुसार यक्षराज को किसी दैत्य कुल में जन्म लेना था।यक्षराज यह बात सुनकर घबरा गए। और उन्होंने ब्रह्मदेव देव से विनती करी कि:
यक्ष गंधर्व और देवता सिर्फ अच्छे कामों के लिए जाने जाते हैं। लेकिन दैत्य दुष्ट, अधर्मी होते हैं और आतंक के लिए जाने जाते हैं। इसलिए कृपया कृपया मुझे क्षमा करें और मुझे दैत्य कुल में जन्म लेने का श्राप ना दें।

विष्णु जी का आशीर्वाद: 

बार-बार कहने पर ब्रह्मा जी को यक्षराज पर दया आ गई, लेकिन श्राप अब वापस नहीं हो सकता था। ब्रह्मा जी बोले की आप विष्णु भगवान की शरण में जाइये। वही कोई लीला रच कर आपकी मदद कर सकते हैं। यक्षराज बैकुंठ लोक पहुंचे और वहां विष्णु जी से भी यही विनती करी। विष्णु जी ने भी श्राप को वापस लेने से मना कर दिया।

स्वयं सृष्टि के रचयिता द्वारा दिया गया कोई श्राप वापस नहीं हो सकता। लेकिन मैं तुम्हारी व्यथा समझता हूं और तुम्हारी सहायता के लिए मैं तुम्हें आशीर्वाद देता हूं, कि तुम पांडव कुल में जन्म लोगे।महाभारत के युद्ध में तुम्हारा बहुत बड़ा योगदान होगा। साथ ही साथ कलयुग में सभी मनुष्य तुम्हारी पूजा अर्चना करेंगे।

Barbarik, जन्म:

कुछ समय पश्चात यक्षराज ने भीम के पोते के रूप में जन्म लिया। भीम के पुत्र घटोत्कच और नागकन्या अहिलावती/मौरवी का विवाह हुआ।कुछ समय पश्चात उन्होंने एक बहुत ही तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया। पुत्र के सर पर घने, सुनहरे, बाल होने की वजह से उसका नाम बर्बरीक पड़ा । बर्बरीक बचपन से ही बहुत ही तेजस्वी, होनहार, निडर था।

बर्बरीक को जो भी शिक्षा मिली वह उसकी माता और श्रीकृष्ण से ही मिली। उसके गुरुओं के सिद्धांतों के अनुसार बर्बरीक को हमेशा निर्बल ,असहाय की ही मदद करनी चाहिए।

बर्बरीक अपने युद्ध कौशल के अलावा एक बहुत बड़ा योगी और शिव भक्त था। बहुत ही कम उम्र में बर्बरीक ने शिव जी की कठोर तपस्या करके उनको प्रसन्न कर दिया। शिव जी ने प्रसन्न होकर उसे वरदान में 3 दिव्य बाण दिए। इन बालों की मदद से वह किसी भी युद्ध को कुछ क्षणों में समाप्त कर सकता था। जब बर्बरीक को पता चला कि महाभारत का युद्ध अब टल नहीं सकता। पांडवों और कौरवों में युद्ध होकर ही रहेगा।

तब वह अपनी माता से आज्ञा लेकर युद्ध भूमि की ओर चल पड़ा। और कहा कि

मैं खुद युद्ध देखूंगा, निरिक्षण करूँगा और युद्ध में उसी का साथ दूंगा जो युद्ध में कमजोर पड़ रहा होगा। 

श्री कृष्ण ने माँगा Barbarik का शीश

दूसरी तरफ महाभारत का युद्ध होने से पहले श्री कृष्ण सभी योद्धाओं से मिलने जातें हैं। पूछते हैं कि अगर तुम्हे अकेले ही युद्ध समाप्त करना पड़े तो कितना समय लगेगा।
  1. अर्जुन ने कहा कि वह 28 दिन में युद्ध समाप्त कर देगा।
  2. द्रोणाचार्य बोले कि वह 25 दिन में युद्ध समाप्त कर सकते हैं।
  3. कर्ण ने कहा कि वह 24 दिन में युद्ध समाप्त कर सकता है।
  4. भीष्म ने बोला कि वह 20 दिन में युद्ध खत्म कर देंगे।
यह सभी योद्धाओं के उत्तर जानकर कृष्ण चिंता में पड़ गए। क्योंकि उन्हें उन्हें बर्बरीक की विद्या के बारे में पता था। वह यह जानते थे कि बर्बरीक के पास तीन दिव्या बाण है और वह युद्ध भूमि की ओर चल पड़ा है।
Barbarik से मिलने पहुंचे श्री कृष्ण: 

क्योंकि कृष्णा स्वयं बर्बरीक के गुरु रह चुके थे तो वह बर्बरीक से मिलने पहुंचे। और उसके पास पहुंच कर भी यही प्रश्न किया। बर्बरीक ने कहा कि वह युद्ध कुछ क्षणों में ही समाप्त कर देगा। लेकिन वह सिर्फ हार रहे पक्ष का ही साथ देगा। कृष्ण ने अचरज में आते हुए कहा कि तुम्हारे पास तो सिर्फ तीन बाण है कोई सेना नहीं है। तुम मृत्युलोक के सबसे बड़े युद्ध को सिर्फ तीन बाण से कैसे खत्म कर सकते हो ?

बर्बरीक ने कहा:

हे पूज्य दादा कृष्ण, शत्रु को मारने के लिए सिर्फ एक ही बाण काफी है। पहले पहले तीर से वह उन लोगों को चिन्हित करेगा जिन्हें बचाना चाहता है। दूसरे बाण से उन लोगों को चिन्हित करेगा जिन्हें मारना चाहता है और तीसरे बाण से मारने के लिए चिन्हित हुए लोगों को वध करके मेरा बाण वापस अपने तूणीर में आ जाएगा।

कृष्ण बर्बरीक की परीक्षा लेते हैं: 

कृष्ण जी ने उसकी बात को परखने के लिए उससे कहा कि अगर वह पीपल के इस पेड़ पर जितने भी पत्ते हैं सभी को भेद कर दिखाए तो वह मान जाएंगे। बर्बरीक उनकी यह परीक्षा स्वीकार कर लेता है,बाण को धनुष पर लगाकर, आंखें बंद करके, मन ही मन शक्ति का आह्वान करता है। यह देख कृष्ण तुरंत एक पत्ता अपने पैर के नीचे दबा लेते हैं। बर्बरीक आंखें खोलता है और बाण छोड़ देता है।बाण क्षण से भी कम समय में सारे पत्तों को भेदकर कृष्ण के पैरों के पास आकर रुक जाता है। बर्बरीक कृष्ण से पैर हटाने के लिए कहते हैं,

हे कृष्ण मेरे बाण को सिर्फ पत्ते भेदने का ही निर्देश मिला है। मैं आपके पांव को नहीं भेद सकता इसलिए कृपया अपना पैर हटा लीजिए। जिससे कि आपके पैर के नीचे दबे पत्ते को उसका बाण भेद सके।

कृष्ण को चिंता सताने लगी कि अगर किसी वजह से कौरव युद्ध में हारने लगे तो बर्बरीक कुछ ही क्षणों में अपने दादा जनों (पांडवों) का वध कर देगा। लेकिन बैंकुठ लोक में, यक्षराज (बर्बरीक) को मृत्यु लोक में दैत्य के रूप में जन्म लेने के बाद भी कुछ अच्छा करने का आश्वासन मिला था। लेकिन अगर बर्बरीक ने पांडवों का वध कर दिया तो विष्णु जी द्वारा यक्षराज को दिया आश्वासन बेकार जाएगा। 

कृष्ण ब्राह्मण वेश में Barbarik से उसका शीश मांगते हैं 

अगले दिन श्री कृष्ण एक ब्राह्मण का रूप लेकर बर्बरीक के पास आते हैं। ब्राह्मण बर्बरीक के पास आकर “भिक्षाण देहि” कहकर कुछ भिक्षा देने के लिए कहते हैं। बर्बरीक तुरंत अपने स्थान से उठकर ब्राह्मण देवता को प्रणाम करता है और कुछ भी मांगने के लिए कहता है। ब्राह्मण देवता तुरंत बर्बरीक से उसका शीश मांग लेते हैं। बर्बरीक भी अपना शीश देने के लिए तैयार हो जाता है। लेकिन एक ब्राह्मण का किसी से उसका सर मांगना बर्बरीक को समझ नहीं आता। और वह ब्राह्मण देवता से विनती करता है कि उन्हें अपना असली रूप दिखाएं। ब्राह्मण देवता तुरंत श्री कृष्ण बनकर बर्बरीक के सामने आ जाते हैं।

कृष्ण को पहचान कर बर्बरीक की आंखों से आंसू बहने लगते हैं। वह कृष्ण से विनती कर बोलता है कि मैं अपनी मां से बोल कर आया हूं कि युद्ध भूमि में जा रहा हूं। लेकिन आपको अपना शीश देने का वचन भी दे चुका हूं। ऐसे में मेरा युद्ध देखने की अभिलाषा अधूरी रह जाएगी। कृष्ण बर्बरीक को आश्वासन देते हैं की वह ज़रूर युद्ध देख पाएगा।उसकी वीरता की कथा पूरे विश्व में जानी जाएगी। कलयुग में मनुष्य तुम्हारी पूजा करेंगे और तुम्हारे सिद्धांतों पर चलेंगे। जब जब महाभारत की गाथा पढ़ी और सुनाई जाएगी तुम्हारा नाम ज़रूर आएगा। श्रेष्ठ शूरवीरों , धनुर्धरों में तुम्हारी गणना होगी।

और इस तरह से एक बार फिर कृष्ण जी ने अपने परम मित्र और भाई, अर्जुन की जीवन रक्षा करी। 

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