Nar aur Narayan

nar aur narayan

कृष्ण को सबसे प्रिय थे अर्जुन।अंतिम भाग।

Nar aur Narayan त्रेता युग में जन्में दो जुड़वाँ भाई थे। इन्ही दोनों भाइयों ने द्वापर युग में कृष्ण और अर्जुन ,ममेरे भाइयों के रूप में जन्म लिया। पांडवों की माता कुंती और श्रीकृष्ण के पिता वासुदेव जी, भाई बहन थे। 

पिछले जन्म में सगे जुड़वाँ भाई होने के कारण, कृष्ण, सभी पांडवों में सबसे ज़्यादा अर्जुन को प्रेम करते थे।इतना प्रेम करते थे की, कृष्ण द्वारा, महाभारत में घटित लगभग सभी राजनीतिक गतिविधियाँ अर्जुन के आस पास ही घूम रही थीं। आपने पिछले 4 भागों में पढ़ा होगा कैसे, श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बचाने के लिए चालें चलीं। 

  1. अश्वसेन से बचाया अर्जुन का जीवन, अर्जुन से कराया जयद्रथ का वध – भाग 1 
  2. भीमसेन और हिडिम्बा के पुत्र घटोत्कच का वध – भाग 2  
  3. भीमसेन और हिडिम्बा के पोते और घटोत्कच के पुत्र, बर्बरीक का वध –  भाग 3
  4. द्रौपदी के पुत्रों का वध – भाग 4  
और इस अंतिम भाग में हम उनके पूर्व जन्म के बारे में जानेंगे। 

Nar aur Narayan त्रेता युग में

त्रेता युग में एक दम्बोद्भव (दम – बोध – भव ) नाम का असुर था। यह अपने नाम के अनुसार बहुत ढीठ और अहंकारी था। हमेशा अपने बल का दुरूपयोग निर्बलों को मारने और सताने के लिए करता था। लेकिन इस असुर में एक बात अच्छी थी की यह सूर्य भगवान् का बहुत बड़ा भक्त था।
दम्बोद्भव ने की सूर्य देव की तपस्या
लेकिन इतने से भी उसे शांति नहीं मिल रही थी। nar aur narayan surya bhagwanउसे और शक्ति और बल चाहिए था। इसके लिए उसने सूर्य देव को प्रसन्न करने की सूची।दम्बोद्भव ने कई वर्षों तक सूर्य देव की तपस्या करी। सूर्यदेव उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर एक दिन उसे दर्शन देते हैं।
दम्बोद्भव मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हूं, वर मांगों।  – प्रभु मैं चाहता हूं कि मैं अमर हो जाऊं। प्रिय भक्त, यह संभव नहीं है। मैं अमरता का वरदान नहीं दे सकता कुछ और मांगो। – ठीक है प्रभु आप मुझे, 1000 कवच का वरदान दें। यह कवच वही तोड़ पाए जिसने हजार वर्ष की तपस्या करी हो। और जब भी मेरा कवच कोई तोड़ेगा तो वह खुद भी मृत्यु को प्राप्त होगा।
सहस्त्रकवच का प्रकोप 

अपने भक्त से इतना विचित्र और अजय वरदान मांगना सूर्य देव को चिंतित कर देता है। लेकिन फिर भी यह वरदान देकर वहां से अंतर्ध्यान हो जाते हैं। दम्बोद्भव के इस वरदान के बारे में जानकर कोई भी उससे टकराना नहीं चाहता था। और जिस किसी को भी इस वरदान के बारे में नहीं पता था, वह मृत्यु को प्राप्त होता था। दम्बोद्भव का प्रकोप बढ़ता ही जा रहा था। वह अपने आपको अमर मान चुका था और मनचाहा अत्याचार कर रहा था। क्युकी वह 1000 कवचों से सुरक्षित था। इसलिए उसे सहस्त्र कवच भी बुलाया जाने लगा।

देवी सती की बहन मूर्ति का विवाह 

दूसरी तरफ देवी सती के पिता दक्ष प्रजापति, अपनी पुत्री “मूर्ति” का विवाह ब्रह्मा जी के पुत्र “धर्म” से कर देते हैं। धर्म से विवाह के पश्चात एक दिन मूर्ति बहुत चिंतित दिखाई पड़ी।धर्म, मूर्ति के पास आते हैं और उनसे चिंता का विषय पूछते हैं। मूर्ति दम्बोद्भव के बारे में बताती  हैं। दम्बोद्भव को मिले सूर्य के वरदान और 1000 कवचों के बारे में बताती है। धर्म दम्बोद्भव के अत्याचारों से भली-भांति अवगत थे। वह मूर्ति से विष्णु भगवान से प्रार्थना करने के लिए कहते हैं।

Nar aur Narayan का जन्म

मूर्ति विष्णु भगवान की पूजा अर्चना शुरू करती हैं। और एक दिन विष्णु भगवान मूर्ति को दर्शन देते हैं। मूर्ति अपनी चिंता का विषय उनसे बताती हैं। तब विष्णु भगवान मूर्ति को आश्वासन है कि वे जल्द ही दम्बोद्भव के पापों का अंत करेंगे। कुछ समय पश्चात मूर्ति 2 जुड़वा पुत्रों को जन्म देती है। यह दोनों ही पुत्र बहुत ही तेजस्वी और स्वयं विष्णु स्वरूप दिखाई पड़ते थे। भगवान विष्णु के आशीर्वाद की वजह से इन भाइयों का नाम “नर और नारायण” पड़ा।दोनों भाई बिल्कुल एक जैसे दिखते थे शरीर में दो होते हुए भी उनकी एक ही आत्मा थी। यह साक्षात विष्णु जी के अवतार थे। 
मूर्ख दम्बोद्भव

दोनों दैवीय पुत्र बहुत ही तेजी से बड़े हो रहे थे। एक दिन दोनों तेजस्वी युवक बद्रीनाथ के समीप किसी जंगल में तपस्या कर रहे थे। दम्बोद्भव को यह बात पता थी कि यहां पर कोई दैवीय युवक तपस्या कर रहे हैं। वह अपने अहंकार, सूर्य देव के वरदान और शक्ति के मद में चूर, Nar aur Narayan की तरफ चल पड़ा।

दोनों तेजस्वी युवक दम्बोद्भव के आने से बिल्कुल विचलित नहीं हुए, और तपस्या करते रहे। लेकिन दम्बोद्भव को यह सहन नहीं हुआ और उसने दोनों भाइयों को ललकारना शुरू कर दिया। बहुत समझाने पर भी जब दम्बोद्भव नहीं रुका। तब नर अपनी तपस्या बीच में ही छोड़ कर उठे और दम्बोद्भव की चुनौती स्वीकार करी।

Nar aur Narayan का युद्ध 

नर – नारायण और दम्बोद्भव कई वर्षों तक लगातार युद्ध चला और 1000 वर्ष के बाद नर ने दम्बोद्भव का पहला कवच तोड़ दिया। लेकिन सूर्य भगवान के वरदान की वजह से नर की भी मृत्यु हो गई। यह देख नारायण दौड़े चले आए और अपने भाई के समीप आकर बैठ गए। दम्बोद्भव अपने आप को विजयी मानकर पागलों की तरह हंसने लगा और दोनों का उपहास करने लगा।

भगवान नारायण मुस्कुराए और उन्होंने कुछ मंत्रों का उच्चारण शुरू कर दिया। मंत्र उच्चारण समाप्त होते ही नर जीवित हो उठे। जब नर हजार वर्षों तक दम्बोद्भव के साथ युद्ध करने में व्यस्त थे। तब नारायण भगवान शिव की तपस्या में लीन थे और उन्होंने महामृत्युंजय मंत्र को सिद्ध कर लिया था। इसी मंत्र की वजह से नर फिर से जीवित हो उठे। इस बार नर तपस्या करने बैठते हैं और नारायण दम्बोद्भव से युद्ध करते हैं। कई वर्षों तक चले इस युद्ध में दम्बोद्भव एक और कवच खो देता है। और भगवान नारायण की मृत्यु हो जाती है। लेकिन नर उन्हें फिर से जीवित कर देते हैं। इस बार नारायण तपस्या करने बैठते हैं और नर दम्बोद्भव से युद्ध करते हैं। यही चक्र वर्षों तक चलता रहा और दम्बोद्भव 999 कवच गंवा बैठता है, उसके पास सूर्य भगवान् का दिया सिर्फ एक कवच बचता है।

Nar aur Narayan ने दिया सूर्य भगवान् को श्राप 

लेकिन अब वह जान चुका होता है कि यह दोनों दिव्या युवक कोई आम युवक नहीं हैं।और जरूर किसी परम शक्ति के अवतार हैं। वह युद्ध भूमि छोड़कर अपने इष्ट भगवान सूर्य देव के शरण में जाता है। और विनती करता है कि वह उसकी रक्षा करें उसे जीवन दान दें और नर – नारायण से उसको बचा ले। अपने भक्तों को इस तरह व्यथित देखकर भगवान सूर्य को उस पर दया आ जाती है। 

और वह उसे अपनी शरण में रख लेते हैं। Nar aur Narayan भी उसका पीछा करते-करते सूर्यदेव के पास पहुंचते हैं और उनसे दम्बोद्भव को उन्हें सौंपने के लिए कहते हैं। लेकिन सूर्य भगवान अपने भक्त की भक्ति के आगे विवश होकर Nar aur Narayan को मना कर देते हैं। यह जानते हुए भी कि दम्बोद्भव ने कितने अत्याचार करें और फिर भी सूर्य भगवान ने उसे शरण दी और सौंपने के लिए मना कर दिया। इस बात से नाराज होकर नर और नारायण सूर्य भगवान को श्राप दे देते हैं।

सूर्यदेव आपको अगले युग द्वापर में जन्म लेना होगा और तब हम दोनों भाई दम्बोद्भव का वध करेंगे। 

आपने इसे शरण दी। इसलिए इसके किये पापों के आप भागीदार हुए और आप भी इसके साथ जन्म लेंगे इसका कर्मफल भोगेंगे। 

द्वापर युग और कर्ण का जन्म

द्वापर युग शुरू होता है कुंती और सूर्य भगवान के धर्म पुत्र के रूप में दानवीर कर्ण जन्म लेता है। सूर्यपुत्र कर्ण के अंदर सूर्य भगवान और असुर दम्बोद्भव दोनों के अंश थे।इसीलिए महाप्रतापी, बलवान, निडर और महादानी होने के बाद भी उसने कौरवों का साथ दिया। उसके अंदर घमंड, ईर्ष्या और अधर्मी जैसे अवगुण भी थे। भगवान नर और नारायण के श्राप की वजह से सूर्य भगवान भी कर्ण रूप में पाप कर्मों को भोग रहे थे।
कर्ण का वचन 

एक दिन जब कर्ण जब सूर्य भगवान की पूजा कर रहा था तब माता कुंती उसके पास जाती हैं। और कहती है कि पुत्र मैं तुमसे कुछ मांगने आई हूं। कर्ण समझ जाता है कि कुंती माता अवश्य ही अर्जुन का जीवन दान मांगने आई है। वह कहता है कि जो मांगना है मांगिये, लेकिन पुत्र के हक से नहीं राजमाता की हक से मांगे। अगर आप अर्जुन का जीवन दान मांगने आई है तो मैं वह नहीं कर सकता मैंने पहले ही अपने मित्र दुर्योधन को वचन दे दिया है। लेकिन अर्जुन को छोड़कर अगर बाकी चारों पांडव भाई मेरे सामने आए तो मैं उन्हें परास्त करके जीवित छोड़ दूंगा।

महाभारत का 17वां दिन

दुर्योधन महाभारत के युद्ध में अपनी हार लगभग स्वीकार चुका था। द्रोणाचार्य की मृत्यु के बाद अब उसे सिर्फ कारण से उम्मीद थी।कर्ण भी अपने मित्र को दिए वचन के अनुसार काम कर रहा था।कर्ण ने कुंती माता को दिए अपने वचन के अनुसार। अर्जुन को छोड़कर, बाकी सभी पांडव – युधिष्ठिर, भीमसेन, नकुल, सहदेव को परास्त करके जीवित छोड़ दिया था।

अब कर्ण और अर्जुन आमने-सामने थे। कृष्ण, अर्जुन के रथ के सारथी थे। और वह कर्ण के अंदर दम्बोद्भव को पहचान गए थे। वह यह जान गए थे कि आज दम्बोद्भव का वध नर (अर्जुन के रूप में नर) और नारायण (कृष्ण के रूप में नारायण) कर देंगे। 

कर्ण की प्रशंशा 

युद्ध के समय, जब-जब अर्जुन कर्ण पर तीर चलाता था तब-तब कर्ण का रथ कई गज पीछे खिसक जाता था। लेकिन जब कर्ण अर्जुन के रथ पर तीर चलाता था तो वह सिर्फ चार-पांच अंगुल ही पीछे खिसकता था। ऐसा कौशल देखकर कृष्ण, कर्ण की प्रशंसा करते हैं। अर्जुन यह देखकर चकित हो जाता है और कृष्ण से पूछता है कि हे कृष्ण मेरे तीर ज्यादा प्रभावशाली है। मेरे तीर कर्ण के रथ को कई गज पीछे खिसका देते हैं। जबकि उसके तीर हमें सिर्फ 4-5 अंगुल ही पीछे किसका पाते हैं। तो फिर आपने कर्ण की प्रशंसा क्यों करी। 

हे पार्थ, कर्ण के रथ पर सिर्फ कर्ण और उसके सारथी “शल्य” विराजमान है। लेकिन तुम्हारे रथ पर पर, तुम, मैं और स्वयं बजरंगबली विराजमान है। ऐसे रथ को  हिलाना भी संभव नहीं है। लेकिन वह 4-5 अंगुल खिसका रहा है। यह बहुत ही कुशल धनुर्धर की पहचान है।

कर्ण भी अर्जुन की बहुत प्रशंसा करता है। क्योंकि जब जब कर्ण ने अर्जुन के धनुष की प्रत्यंचा अपने बाणों से काट दी। अर्जुन ने क्षण भर में अपनी प्रत्यंचा वापस धनुष पर चढ़ाकर वार किया। ऐसा कर पाना हर किसी के बस की बस में नहीं था। क्योंकि कर्ण के बाणों की गति बहुत तेज और प्रलयंकारी होती थी।

भगवान परशुराम का श्राप 

nar aur narayan parshuram bhagwanयह युद्ध काफी लंबा चला।कर्ण ने अर्जुन पर नागास्त्र का प्रयोग किया। इस बाण पर खुद अशोक सेन नाम का नाग बैठा था जो अर्जुन को मारना चाहता था। यहां पढ़ें। लेकिन कृष्ण की मदद से सहायता से अर्जुन बच गया। और दोनों में युद्ध चलता रहा। कुछ देर बाद अपने गुरु परशुराम की दिए श्राप की वजह से करण का रथ धरती में धंस गया। भगवान परशुराम के श्राप के अनुसार इस वक्त कर्ण अपने सभी शक्तियां भूल जाएगा। अपने रथ के पहिए को धरती से निकालने में विफल कर्ण अर्जुन से निवेदन करता है कि

अर्जुन युद्ध नीति के नियमों के अनुसार निहत्थे पर वार करना ठीक नहीं। इसलिए जब तक मैं वापस अपने रथ का पहिया निकालकर तुम से युद्ध करने के लिए तैयार होता हूं। तब तक, तुम अपने बाण चलाने बंद कर दो।

निहत्थे कर्ण का वध

nar aur narayan aur shri krishnaलेकिन कृष्ण (नारायण) अर्जुन (नर) को समझाते हैं कि कर्ण की बात ना सुने। तब युद्ध नीति कहां गई थी। जब सभी योद्धाओं ने एक साथ निहत्थे अभिमन्यु पर वार किए और वह वीरगति को प्राप्त हुआ। तब मान मर्यादा कहां गई जब उन्होंने पूरी सभा के सामने द्रौपदी को निर्वस्त्र करने की सूची। अभी सही समय है अगर यह अभी नहीं मरा तो फिर उसको मारना मुश्किल हो जाएगा। तुरंत गांडीव उठाओ और इसका वध कर दो।

अर्जुन ने तुरंत एक दिव्य शक्ति का प्रयोग किया।  और कर्ण का सिर धड़ से अलग कर दिया। कर्ण के मृत शरीर से सूर्य का अंश वापस सूर्य में अवशोषित हो गया और मृत पड़ा शरीर, दम्बोद्भव मारा गया।

ध्यान दें,

दम्बोद्भव के कवच कोई एक ही तोड़ सकता था। त्रेता युग में कृष्ण (नारायण) और अर्जुन (नर) एक आत्मा थे। लेकिन द्वापर युग में, महाभारत के समय यह दोनों अलग अलग शरीर और आत्माएं थे। फिर भी कर्ण का वध कर पाए। क्युकी, देवराज इंद्र पहले ही कर्ण से कवच और कुण्डल, छल पूर्वक ले चुके थे। 

अगर कृष्ण (नारायण) के कहने पर अर्जुन (नर) अगर तब कर्ण का वध न करते तो:

  1. शायद, नर नारायण और दम्बोद्भव के बीच का युगों से चल रहा युद्ध चलता रहता। 
  2. कौरव जीत सकते थे। 
  3. सूर्य भगवान् फिर अपने प्रिय भक्त (दम्बोद्भव) को बचाने आ जाते। 

 

आपको यह पोस्ट कैसी लगी ? कमेंट बॉक्स में लिखें। 

Please share | कृपया शेयर करें।

1 thought on “Nar aur Narayan”

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *