Ghatotkach

krishna arjun

कृष्ण को सबसे प्रिय थे अर्जुन। भाग 2 …

Ghatotkach ने अपना जीवन देकर अर्जुन की जान बचाई। घटोत्कच अर्जुन का भतीजा और राक्षसी, मायावी होने के बाद भी सबको बहुत प्रिय था। घटोत्कच बहुत, पराक्रमी  और शूरवीर योद्धा था। 

श्रीकृष्ण ने ही यह लीला रची थी। जिस से की अर्जुन की जान बच जाए और Ghatotkach वीरगति को प्राप्त हो। कृष्ण अर्जुन को पार्थ कहकर बुलाते थे। अर्जुन द्वारा अपने ही भाइयों पर वार करने पर संकोच कर रहे थे। तब कृष्ण ने उनको अपने दिव्या रूप के दर्शन दिए और गीता का उपदेश दिया। गीता का उपदेश जब अर्जुन को दिया जा रहा था, तब और भी कई लोगों ने कृष्ण को सुना। लेकिन यह उपदेश विशेषतः अर्जुन के लिए ही था। कृष्ण, पांडवो के ममेरे भाई थे। लेकिन फिर अर्जुन ही क्यों सबसे प्रिय थे? कृष्ण क्यों घटोत्कच का वध करना चाहते थे ? 

कब कब कृष्ण ने अर्जुन को मरने से बचाया?

(3) कर्ण, अर्जुन, इंद्र और घटोत्कच 

महाभारत के समय, बिजनौर के किसी वन में पांडव अपना वनवास काट रहे थे। उस समय पर यहां मयदानव हिडिंब का प्रकोप था। हिडिंबा अपनी बहन हिडिम्बा द्वारा जंगल में आने वाले किसी भी मनुष्य को पकड़कर लाने के लिए कहता था। और फिर उन्हें खा जाता था।

Ghatotkach जन्म:

प्यास से व्याकुल थके हुए पांडवों ने कुछ देर जंगल में ही विश्राम करने की सोची।ghatotkach-bhim-hidimba भीम उठे और आसपास किसी सरोवर से जल लाने के लिए चल पड़े।और तभी हिडिम्ब मनुष्य की गंध आ गई और उसने अपनी बहन हिडिंबा को पांडवों को पकड़कर लाने के लिए कहा। हिडिंबा जैसे ही पांडवों के करीब निकट पहुंची उसे रास्ते में ही भीम मिल गए और वह उन पर मुग्ध हो गई।हिडिम्बा ने अपनी माया से तुरंत एक सुंदर नारी का रूप लिया और अपने भाई के बारे में सब कुछ बता दिया। और उसने यह भी बता दिया कि वह भीम को पति के रूप में स्वीकार कर चुकी है।

ghatotkachजब हिडिंबा ने काफी देर लगा दी तो हिडिम्ब खुद उसको देखने के लिए पहुंचा। और उसको जल्दी ही सारा मामला समझ में आ गया। भीम ने हिडिंब को ललकारा और कुछ देर बाद ही उसका वध कर दिया। हिडिंबा और भीम की लड़ाई का शोर सुनकर बाकी पांडव भी वहां आ गए। हिडिंबा ने माता कुंती से विनती करी और बताया कि मैं भीमसेन को अपना पति मान चुकी हूँ । और माता कुंती से उसको अपनाने का आग्रह किया । इस बात पर युधिष्ठिर ने हिडिंबा की बात मान ली। भीम अपने बड़े भाई युधिष्ठिर की बात नहीं टाल सकते थे।

हिडिंबा और भीम ghatotkachदोनों जंगल में साथ रहे और कुछ समय के पश्चात उन्होंने एक पुत्र को जन्म दिया। इनके पुत्र में भीम के जैसा बलशाली और हिडिंबा के जैसा मायावी था।मायावी होने की वजह से वह कुछ ही दिन में बहुत विशाल और हाथी( घट) जैसा बन गया। उसके सर पर कोई बाल (उत्कच ) नहीं थे । इसी वजह से उसका नाम (घट + उत्कच) घटोत्कच पड़ा।

दानवीर कर्ण :

दूसरी तरफ इंद्र अपने दैवीय पुत्र और कृष्ण अपने सखा ,अर्जुन  को लेकर बहुत चिंतित थे। ghatotkach aur suryaputra karnवह दोनों जानते थे कि कर्ण अर्जुन से नफरत करता है। कृष्ण यह भी जानते थे कि जब तक कर्ण के पास उसके पिता सूर्य देव द्वारा दिए गए कवच और कुंडल है।तब तक वह अजय है उसे कोई नहीं मार सकता।

ghatotkach aur indra aur karnकृष्ण के कहने पर, एक दिन इंद्र कर्ण के पास एक भिक्षु का रूप लेकर पहुंचे। और बोले

हे दानवीर कर्ण तुम्हारे बारे में सुना है कि तुम्हारे पास जो आया वह कभी खाली हाथ नहीं गया।

मैं आज तुमसे कुछ भिक्षा लेने आया हूं तुम मुझे निराश तो नहीं करोगे। इतना सुनते ही कर एकदम खड़ा हुआ और उसने वचन दिया की कि जो भी आप मांगेंगे मैं जरूर दूंगा। इंद्र ने बिना समय गँवाय उसके कवच और कुंडल मांग लिए। इतना सुनते ही कर्ण ने कवच और कुंडल इंद्र को दान कर दिए।

इंद्र ने दी कर्ण को अमोघ शक्ति :

इंद्र का काम हो चुका था। जैसे ही वह अपने रथ पर सवार होकर वहां से चलने के लिए निकले।रथ तुरंत धरती में धंस गया और आकाशवाणी हुई किkarn ki shakti

तुमने कर्ण के साथ छल करा है और तुम्हें इसकी भरपाई करनी होगी। जब तक तुम न्याय नहीं करोगे, तुम यहां से नहीं जा पाओगे और रथ ऐसे ही धरती में धंसा रहेगा।

 

आकाशवाणी सुनकर इंद्र तुरंत अपने असली भेष में कर्ण के पास पहुंचेऔर कर्ण से कहा कि तुम कुछ मुझ से मांगो लेकिन कर्ण ने मना कर दिया और बोला कि वह सिर्फ दान करना जानता है दान मांगना नहीं। लेकिन इंद्र ने कर्ण को आकाशवाणी के बारे में बताया और कहा कि जब तक मैं तुम्हें कुछ नहीं दूंगा और अपने किए को ठीक नहीं करूंगा। तब तक मैं मृत्यलोक से नहीं जा सकता। इसलिए मैं तुम्हें एक अमोघ शक्ति देता हूं। इस शक्ति का इस्तेमाल तुम सिर्फ एक बार कर सकते हो। इसका इस्तेमाल तुम जिस पर भी करोगे वह बच नहीं सकता।

महाभारत का 14 वां दिन :

अर्जुन जयद्रथ को मारकर अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर चुका था। कुछ ही देर बाद एक पहाड़ नुमा बहुत ही विशालकाय हाथी जैसा राक्षस युद्ध भूमि में आया। यह कुंती का पौत्र और भीम हिडिंबा पुत्र Ghatotkach था। उसने आते ही कौरवों की सेना को तहस-नहस करना शुरू कर दिया। उसके विशालकाय शरीर के सामने कौरवों की सेना चींटी जैसी प्रतीत हो रही थी। खुद दुर्योधन भी जाकर घटोत्कच से लड़ा लेकिन लहूलुहान होकर वापस आ गया।दुर्योधन कर्ण से कहता है कि इंद्र द्वारा दी गई शक्ति का प्रयोग Ghatotkach पर करे नहीं तो वह जल्दी ही समस्त कौरवों को मार डालेगा। लेकिन कर्ण  मैं यह शक्ति अर्जुन के लिए बचा कर रखी थी और उसने मना कर दिया। फिर सभी के बार-बार कहने वह मजबूर हो गया।

कर्ण ने घटोत्कच पर “श्रेष्ठ एवं असहया वैजयन्ती” नामक शक्ति घटोत्कच पर चला दी। karna-aur-ghatotkachaशक्ति के चलते ही आंधी तूफान आने लगा। आकाश में सभी प्राणी घबरा कर इधर-उधर भागने लगे।चारों तरफ घनघोर अंधेरा छा गया। अंधेरा छा जाने, और मायावी वातावरण हो जाने से। Ghatotkach के अंदर राक्षसी गुण और प्रबल होने लगे। वह और ज्यादा विशालकाय हो गया। लेकिन इंद्र के कहे अनुसार यह शक्ति खाली नहीं जाने वाली थी । वह शक्ति एक भयंकर गर्जना के साथ घटोत्कच के छाती को चीरते हुए चली गई। और आकाश में विलीन हो गई। Ghatotkach का जब इतना विशालकाय शरीर धरती पर गिरा तो उसने कौरवों की एक बहुत बड़ी सेना को अपने नीचे कुचल दिया था।

शोक का वातावरण, लेकिन कृष्ण प्रसन्न थे। आज अगर कर्ण इसको न मारता तो मुझे इसका वध करना पड़ता।

अर्जुन की जान बची, घटोत्कच वीरगति को प्राप्त हुआ।पांडवों के गुट में दुख का माहौल था। कृष्ण अभी भी खुश थे। क्योंकि अर्जुन की जान बच गई थी। उन्होंने अर्जुन से बोला कि इंद्र की दी हुई शक्ति करण ने इंद्र की दी हुई शक्ति तुम्हारे लिए बचा कर रखी थी अगर वह घटोत्कच पर फायर नहीं होती तो वह तुम पर चलती और तुम मर जाते। इसके अलावा घटोत्कच देवी देवताओं के यज्ञ अनुष्ठान को पसंद नहीं करता था और उसमें विघ्न पैदा करता था। तुम लोगों के प्रिय होने की वजह से यह अब तक मुझसे बचा हुआ था। नहीं तो मैं पहले ही इस का वध कर चुका होता।

आपको यह पोस्ट कैसी लगी ? कमेंट बॉक्स में लिखें। 

Please share | कृपया शेयर करें।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *